Saturday, October 6, 2018

ये धुन आपको अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेती है

कुछ फिल्में होती हैं जिनकी लम्बाई दो घंटे के आस पास होती है और आप फ़िल्म शुरू होने के दस मिनट बाद  अपनी घड़ी ताकते हैं के यार कब फ़िल्म ख़त्म होगी। अंधाधुन की लम्बाई ढाई घंटे के ऊपर है और जब ये फ़िल्म ख़त्म होती है तब आपको पता चलता है के ढाई घंटे ख़त्म हो गए। बाकी समीक्षा लिखने से पहले ये भी कहना होगा की जिन निर्देशकों को तनाव भरा असलियत जैसा सिनेमा बनाने के शौक है  और जो मीडिया से तो चार या पांच सितारे समीक्षा में  निकाल लेते हैं लेकिन बनाते फ़िल्म ऐसी हैं जिससे दिमाग का लस्सी दही मठ्ठा सब बन जाता है उन्हें श्रीराम राघवन की टीम से पटकथा लिखने की दीक्षा लेनी चाहिए।

फ़िल्म की कहानी एक अंधे संगीत कलाकार आकाश की है जो लोगों को अपने अंधे होने की एक्टिंग कर रहा है उसे ये लगता है अँधा बनने से पियानो बजाने की कला और निखरेगी। उसकी ये सनक उसे  सिमी (तब्बू) और उसके प्रेमी महेंद्र (  मानव विज ) द्वारा की गयी एक हत्या का चश्मदीद बना देते हैं। उसके बाद इस दलदल में आकाश धंसने लगता है और सिमी और सके प्रेमी से हिसाब  की ठान लेता है।  यहाँ से कहानी में इतने ज़बरदस्त घुमाव और झटके आते हैं के आप को मज़ा आता है लेकिन उसके भी ऊपर मज़ा देगी आपको इस फ़िल्म की ज़बरदस्त कॉमेडी जो इस फ़िल्म के दृश्यों कलाकारों के अभिनय और मज़ेदार संवादों  के ज़रिये लगातार ऊपर उठती है।

फ़िल्म में निर्देशक ने घटनाओं और कहानी के तार इस  ढंग से जोड़े हैं के आप की सोच से बेहतर घुमाव और झटके आपको देखने को मिलेंगे।

फ़िल्म में सभी ने अभिनय उम्दा किया है। लेकिन सबसे आगे हैं सिमी के अभिनय में तब्बू उन्होंने इस फ़िल्म में रंग बदलने वाली औरत का अभिनय ऐसा किया है के आप बस यही सोचते हैं के तब्बू परदे पर ज़्यादा क्यों नहीं आतीं हैं। आयुष्मान ने भी अपना अभिनय ज़ोरदार किया है और इस फ़िल्म के छोटे  छोटे पात्र भी रंग जमा देते हैं।

अगर आपको कॉमेडी या थ्रिलर में से कोई एक भी पसंद है तो ये फ़िल्म पैसा वसूल फ़िल्म है , मुझे हैरानी नही होगी अगर ये फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर सौ करोड़ निकाल ले जाए।





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