महान फिल्म वो नही होती जिसके बारे में मीडिया प्रशंसा के पुल बाँध दे , महान फ़िल्म वो होती है जो ऊपर से तो सीधी और सहज दिखे लेकिन बड़े आराम से आपके दिल को छू भी आप को कुछ सीखा भी जाए। बधाई हो इस लिहाज़ से इस साल की बॉलीवुड की सबसे ज़बरदस्त फ़िल्म है। ऐसी फ़िल्म का बॉक्स ऑफिस पर कमाई करना तो तय होता ही है लेकिन सबसे अच्छा यही होता है के ऐसी फ़िल्म का सफल होना लगभग सबको समझ आता है।
कहानी है जीतेन्द्र (गजराज राव ) और उनकी पत्नी प्रियंवदा ( नीना गुप्ता ) की। रिटायरमेंट के नज़दीक पहुँच रहे शांत स्वभाव के जीतेन्द्र अपनी पत्नी को प्यार करते हैं और उनका परिवार भी खुश है। एक माँ ( सुरेखा सीकरी ) और दो बेटे नकुल (आयुष्मान खुराना ) और गूलर। एक दिन अचानक सबको पता चलता है के प्रियंवदा गर्भवती है और यहीं से कहानी शुरू होती है। पूरा परिवार तनाव में आता है बिखरता है और फिर धीरे धीरे यूँही वापस जुड़ कर इस घटना की सहजता को स्वीकार भी करता है और यहीं से निर्देशक ये सन्देश देने में कामयाब होता है के ज़िम्मेदारियाँ अपनी जगह हैं और इंसान की इच्छाएं और उसका अस्तित्व भी उतना ही ज़रूरी है।
फ़िल्म की सबसे बड़ी खूबी यही है के फ़िल्म की पटकथा इतना सोच कर लिखी गयी है के कब आप हंस पड़ेंगे कब क्या होगा और कब कौन सा पात्र क्या करता है ये आपको बहुत चौंकाता भी है और फ़िल्म से बाँधे रखता है। जैसे नकुल को अचानक अपनी प्रेमिका के घर पर उसकी माँ के ताने सुनकर एहसास होता है के वो अपने परिवार से कितना अन्याय कर रहा है। बूढी सास अपनी बहु प्रियंवदा के आत्मसम्मान के लिए अपनी बेटी और उसकी रिश्तेदार पर आक्रामक हो जाती है। सबसे ऊपर है फ़िल्म का हास्य तरह तरह के संवादों और घटनाओं से आप बार बार हँसते हैं जैसे गजराज राव का जूते पोलिश करते करते अपने बेटे से नज़रें चुराना।
फ़िल्म की भावनात्मक गहरायी बहुत खूब है अंत में परिवार के वापस जुड़ते ही जब जीतेन्द्र और प्रियंवदा चुपचाप उन्हें रसोई से देखते हैं तो आपको अपने परिवार के ऐसे पलों का एहसास होता है। फ़िल्म में कई अच्छी साथ चलने वाली घटनाएं भी हैं जैसे बड़े भाई का अपने छोटे भाई के साथ होती मार पीट के लिए स्कूल के बिगड़े लड़के से भिड़ना। या नकुल की अपनी प्रेमिका के साथ बिगड़ती और फिर बनती कहानी। सान्या मल्होत्रा ने एक बार फिर अच्छा अभिनय किया है।
फिल्म में सभी ने अच्छा अभिनय किया है लेकिन सबसे आगे का अभिनय रहा दादी के रोल में सुरेखा सीकरी का , ये बूढा ज्वालामुखी इस फ़िल्म की जान है। गजराज राव का ये अब तक सबसे सुलझा अभिनय है। नीना गुप्ता ,आयुष्मान खुराना और गूलर जैसे सभी अभिनेता अपने काम जुट कर निभा गए हैं। फ़िल्म का संगीत भी उम्दा है और गाने जंचते हैं।
मेरी रेटिंग पूरे पांच स्टार
ये वो फ़िल्म है जो परिवारों और दोस्तों को साथ बैठ कर देखनी चाहिए।
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