Friday, September 14, 2018

मनमर्ज़ियाँ की जगह फ़िल्म का नाम पंजाब वेलवेट रखते तो बेहतर होता !

अनुराग कश्यप की फ़िल्म से आपको दो ही तरह का अनुभव होता है।  या तो वो आपकी अंतरात्मा तक से वाह वाह करवाती है जैसे गैंग्स ऑफ़ वास्सेय्पुर या आपकी उसी अंतरात्मा से कठोर आलोचना निकलवाती है जैसे बॉम्बे वेलवेट।

मनमर्ज़ियाँ पुरानी कई हिट त्रिकोण फिल्मों का कश्यपिकरण है और ये इतना घटिया है के फ़िल्म का नाम अगर अनुराग की अब तक की सबसे बेढंगी फ़िल्म बॉम्बे वेलवेट की तर्ज़ पर पंजाब वेलवेट रख देते तो हम कम से कम उन्हें ईमानदारी के नंबर तो दे देते।

फ़िल्म में कहानी तीन वाक्यों में समेटी जा सकती है। रूमी और विक्की प्यार करते हैं। बीच में रॉबी आ धमकता है। रूमी एक को चुन लेती है। अब इस तीन वाक्य की कहानी में कई रंग हो सकते थे। तापसी और अभिषेक के अभिनय से रंग थोड़ा है भी लेकिन विक्की कौशल का पात्र इतना सतही लिखा गया है के फ़िल्म झटके ले ले के आगे बढ़ती है।



ऊपर से अनुराग कश्यप की पुरानी अकड़ यहाँ भी फ़िल्म को ले डूबती है के भाई पटकथा गयी तेल लेने मैं तो अपने ढंग से फ़िल्म दिखाने वाला हूँ लिहाज़ा फ़िल्म में कभी कोई नदी किनारे बैठ के टसुए बहाने लगता है।  कभी बिना बात की दे दना दन लिपटा  चिपटी चालू हो जाती है।  कभी  अभिषेक बच्चन किसी न किसी को घूरते हुए बैठे रहते हैं। विक्की कौशल को जो मन में आये कहो और करो वाला पात्र तो दिया ही गया है और उन्होंने इस पात्र की सहारे दिमाग का दही लस्सी मठ्ठा सब बना डाला है।

अनुराग कश्यप की पिछली फ़िल्म मुक्काबाज़ की शोले से पैंतीस और लगान से पचपन गुना आगे की फ़िल्म  समीक्षकों ने कहा था। लोग ने तारीफ लिखते लिखते कलम कागज़ दावत छाती सब फाड़ ली थी। फ़िल्म ने घिसट घिसट के दस करोड़ छाप लिए थे। ये फ़िल्म दस करोड़ भी पकड़ ले तो गणपति का चमत्कार माना जाना चाहिए।



मेरी रेटिंग एक स्टार वो भी अभिषेक के सधे हुए और तापसी के जुझारू अभिनय के लिए।



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