सुई धागा मौजी (वरुण धवन) और उसकी पत्नी ममता (अनुष्का शर्मा) के संघर्ष की कहानी है। मौजी के हालातों में आर्थिक तंगी भी है और मजबूरी भी लेकिन फिर भी उसका तकिया कलाम है - सब बढ़िया है। एक दिन उसकी पत्नी उसकी बेइज़्ज़ती होते देखती है और कहती है के ऐसी ज़िन्दगी से बेहतर है के वो अपने दादा की विरासत कपड़ों की सिलाई को फिर आगे बढ़ाये , मौजी कई परेशानी झेलता इस रस्ते पर आगे बढ़ता है और एक दिन वो और उसकी पत्नी अपनी मंज़िल पा लेते हैं। सिर्फ अपनी मंज़िल ही नही पाते वो अपने आस पड़ोस के लोगों को भी एक अच्छे काम पे लगा लेते हैं जो सिलाई का काम छोड़ कुछ और कर रहे थे।
सुई धागा एक सुखांत कहानी है इसलिए हम में से कुछ फ़िल्म के अंत को हजम न कर पाएं लेकिन निर्देशक ने इतना तो दिखाया है के मेहनत और अच्छी सोच के सहारे आदमी ज़िन्दगी की जंग जीत भी सकता है और सुकून भी पाटा है।
फ़िल्म के तीन ज़बरदस्त पहलू हैं।
पहला - इसके कलाकारों का अभिनय और जिस तरह से निर्देशक ने उन्हें उभारा है। जैसे वरुण और अनुष्का का अभिनय तो अच्छा है ही साथी कलाकारों ने भी रंग जमाया है ख़ास कर वरुण के पिता के पात्र में रघुबीर यादव ने क्या छाप छोड़ी है। छोटे छोटे पात्र जैसे पलटेराम और मौजी का मुस्लमान दोस्त जो उसकी बड़ी मदद कर देता है।
दूसरा - फ़िल्म की कहानी अपनी सादगी को न छोड़ते हुए भी आपको बांध लेती है और कभी भावनात्मक दृश्यों से जैसे रघुबीर यादव अचानक आकर सिलाई की मशीन 'को ठीक कर देते हैं और कभी ज़बरदस्त हास्य के दृश्यों से फ़िल्म आपको परदे से ध्यान हटाने नही देती।
तीसरा - फ़िल्म में अन्नू मल्लिक ने आरसे के बाद अपना जौहर दिखाया है और कम से कम दो गाने ऐसे हैं जो फ़िल्म को गहरायी दे जाते हैं।
सुई धागा को आप महान फ़िल्म की तरह नही देखें एक अच्छी मनोरंजक फ़िल्म की तरह देखें तो ये फ़िल्म आपको ज़रूर पसंद आएगी।
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