इस फ़िल्म के ट्रेलर को देख कर आपको जितनी उम्मीद हुई होगी वो सारी उम्मीद फ़िल्म शुरू होने के लगभग बीस मिनट में ख़त्म सी होने लगती है। उसके बाद धीरे धीरे फ़िल्म की बोरियत से आपकी आँखों के आगे अँधेरा छाने लगता है शायद यही निर्देशक की तरफ से बत्ती गुल का मतलब था और फिर जब आपको एहसास होता है के अब आप पूरे दो घंटे और बोर होने वाले हैं तो आपकी आँखों से जो आँसूंओं की धार निकलती है शायद उसी से निर्देशक का मतलब मीटर चालू था।
लगभग पौने दो घंटे की इस फ़िल्म में थोड़ा बहुत भी मनोरंजन नही है। कुछ एक आध संवाद अच्छे हैं और तीनों मुख्य कलाकारों ने अच्छा अभिनय किया है। अगर आपने ट्रेलर देखा है तो समझ लीजिये के जितनी फ़िल्म है वो देख ली है।
फ़िल्म में कोर्ट के दृश्य अंत में एकदम स्तरहीन है और मज़ाकिया कम फूहड़ ज़्यादा हैं। फ़िल्म की कहानी जितनी अच्छी हो सकती थी उससे कहीं ज़्यादा फ़िल्म घटिया बनी है।
फ़िल्म में प्रेम त्रिकोण ठूंसा गया है , अदालत की लड़ाई ठूंसी गयी है और कॉमेडी भी ठूंसने की कोशिश की गयी है बस निर्देशक निर्देशन करना भूल गए। इस फ़िल्म को आप अगर न देखें तो आप अपना समय और पैसा बचने वाले समझदार कहलायेंगे और अगर आप इस समीक्षा को पढ़ के भी फ़िल्म देखते हैं तो आप को कम से कम दानवीर तो कहा ही जा सकता है।
मेरी रेटिंग एक स्टार
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