अक्षय कुमार की गोल्ड की सबसे बड़ी खूबी है के पूरे ढाई घंटे की अपनी लम्बाई में ये फ़िल्म एक से बढ़ कर एक रंग दिखाती है। फ़िल्म में एक नए आज़ाद हुए मुल्क के लोगों की बड़ी परेशानियों की तरफ़ इशारा है। एक आदमी का कुछ कर गुजरने का जज़्बा है। कहानी में संवाद अच्छे हैं कम से कम दो गाने अच्छे हैं लेकिन सबसे बड़ी बात गोल्ड फ़िल्म की ये है के आप का ध्यान कभी भी और कहीं भी तपन दा के संघर्ष से हटता नही है।
फ़िल्म की कहानी शुरू होती है १९३६ के बर्लिन ओलम्पिक से जहाँ जूनियर मैनेजर तपन मन में ठान लेता है एक एक दिन वो आज़ाद भारत को हॉकी का गोल्ड मैडल दिलवा के रहेगा। उसका सपना साकार होने को एक दो नहीं पूरे बारह साल लग जाते हैं। टीम गोल्ड मैडल जीत लेती है और एक साथ दो पीढ़ियों का सपना पूरा होता है। ये दो पीढ़ियां कौन सी हैं ? इसके लिए आप गोल्ड देखिये।
फ़िल्म की सबसे बड़ी खूबी है के छोटे छोटे पलों और इसके किरदारों के सहारे कहानी आगे बढ़ती है। फ़िल्म में अक्षय ,विनीत सिंह , कुणाल कपूर ,सनी कौशल इत्यादि के पात्र तो बढ़िया लिखे ही गए हैं। लेकिन इसके छोटे छोटे पात्र जैसे वाडिया मैनेजर भी रंग जमाते हैं।
फ़िल्म की जज़्बाती गहरायी बड़े अच्छे ढंग से उभारी गयी है। जैसे वो दृश्य जब तपन अपने मैनेजर मेहता को समझाता है के बात देश की है राज्य या अपने अपने एहम की नहीं। फिल्म की कहानी को दिलचस्प रखने के लिए निर्देशक ने कहानी के घुमाव भी अच्छे रखे हैं जैसे अचानक एक अच्छी बनी टीम देश के विभाजन से बिखर जाती है। कैसे तपन को टीम फिर बनाने का हौसला मिलता है। लगभग हर दस मिनट के निकलते निकलते आप फ़िल्म से और ज़्यादा जुड़ते हैं।
बॉलीवुड की इस साल की बेहतर फिल्मों में गोल्ड है और आप को ये फ़िल्म एक बार ज़रूर देखनी चाहिए। मेरी रेटिंग ४ स्टार।
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