अक्सर बॉलीवुड हॉरर फिल्में बनाता है। होती वो इतनी ख़राब हैं के हम उन्हें कॉमेडी फ़िल्म की तरह देखते हैं। लेकिन इस फ़िल्म के निर्देशक ने एक हॉरर कॉमेडी फ़िल्म बनायी है और इसकी कॉमेडी इतनी तगड़ी है के आप शायद कुछ दिनों तक कुछ दृश्यों को याद करके मुस्कुराते रहेंगे जैसे वो दृश्य जब गायब हो गए एक लड़के की माँ उसके कच्छे को पकड़ के रो रही होती है। लेकिन पहले आप फ़िल्म की थोड़ी कहानी समझ लें।
चंदेरी नाम के छोटे शहर में एक स्त्री की आत्मा , जिसे सब स्त्री ही कहते हैं रात में पुरुषों को उठा ले जाती है। पीछे वो सिर्फ उनके वस्त्र छोड़ जाती है। एक रहस्यमयी लड़की श्रद्धा कपूर के ऊपर संदेह होता है के ये ही वो स्त्री है और विकी (राजकुमार राव) नाम का लड़का उससे प्यार करता है। कैसे शहर को स्त्री से मुक्ति मिलती है यही फ़िल्म की कहानी है।
जैसा की ऊपर मैने लिखा फ़िल्म की सबसे बड़ी खूबी है उसका हास्य या कॉमेडी जो कहीं भी अश्लील नहीं होता जैसे पिता का पुत्र को स्वयंसेवी बन जाने की सलाह देने वाला दृश्य। फ़िल्म में ज़बरदस्त संवाद हैं जिनका उद्देश्य भी आपको हँसाना है जैसे - ये अमोल पालेकर बाहुबली कैसे बन गया या अबे हम इंसान हैं पतंग नहीं है जो तुम उड़ा उड़ा के फ़ेंक रहे हो।
कहानी का और एक सबसे अच्छा पहलू है के पात्रों के बीच के रिश्तों को बड़े अच्छे ढंग से उभारा गया है जैसे की विकी और उसके दोस्तों के बीच का रिश्ता यहाँ अपारशक्ति खुराना और अभिषेक बनर्जी के अभिनय की तारीफ करना आवश्यक है। दोनों कलाकारों ने अपने अभिनय से तीन दोस्तों की कहानी को ऊपर उठाया है।
पंकज त्रिपाठी ने रुद्रा भैया के अभिनय को अपने उसी मस्त आशवस्तअदा से निभाया है जिसके लिए उनकी पहचान है। स्त्री से मुक्ति पाने के चार कदम जब वो बतलाते हैं तो आप हँसते भी हैं और उनके अभिनय के रसिक भी बनते हैं।
स्त्री की एक और खूबी है इसके अंदर एक छोटे शहर के वातावरण को अच्छे ढंग से उभारा गया है। फ़िल्म का हॉरर भले आपको उतना अलग या महान न लगे लेकिन निर्देशक ने कम से कम घिसे पिटे हॉरर से बेहतर ही घटनाएं दिखाई हैं।
फ़िल्म देखने लायक है मेरी रेटिंग तीन स्टार
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