एक ज़माना था जब अनुराग कश्यप फिल्में बनाते थे। जैसे देव डी और गैंग्स ऑफ़ वास्सेय्पुर। वो फिल्में हमें अच्छी भी लगती थीं। फिर अचानक अनुराग कश्यप निर्देशक अनुराग कश्यप समाज सुधारक बन गया , इसमें भी कोई तकलीफ नहीं थी लेकिन कहीं न कहीं उनकी विचारधारा उनकी पटकथाओं को ढीला या उबाऊ बनाने लगी। ठीक है के मीडिया के एक वर्ग ने इन फिल्मों को सर पे बैठाया पर वो ज़्यादा चली नहीं।
मनमर्ज़ियाँ पुराने अनुराग कश्यप के मेरे जैसे प्रशंसकों के लिए एक सुखद आश्चर्य है। फ़िल्म में आपको चितचोर और हम दिल दे चुके सनम जैसी फिल्मों की छाप दिखेगी लेकिन उससे बड़ी बात ये के इस फ़िल्म को अनुराग कश्यप ने नए समाज और नयी पीढ़ी के अंदाज़ में पेश किया है।
मसलन वो दृश्य जब तापसी का किरदार अपनी ही चाची को हनीमून के बारे में बता रहा है। या वो दृश्य जब अभिषेक और तापसी एक दुसरे को बचपन वाले सवाल पूछते हैं।
फ़िल्म की कहानी में एक ढंग से देखा जाए तो नयापन कतई नही है दो प्रेमियों के कलह में कैसे कोई तीसरा बीच में फँस जाता है ये इस फ़िल्म में दिखाया गया है। फिर वही गलतफहमियां और आंसूं भी इस ट्रेलर में हैं। लेकिन बावजूद इसके कहानी अच्छी लग रही है क्योंकि अभिनेता अच्छे हैं और निर्देशक ने कहानी को शायद दिल से दिखाने की कोशिश की है।
क्या पूरी फ़िल्म ट्रेलर के जितनी दिलचस्प होगी ये कहना मुश्किल है लेकिन कम से कम दो दिन पहले आये लैला मजनू जैसे कनस्तर ट्रेलर से ये कहीं बेहतर है।
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